चुप्पियां
ओढ़ ली हैं मैंने
,
मैं
अब कुछ नहीं कहता
मतलों की
शक्ल में क्यों
कसते
हो फ़िकरे,
कई
साल हुए ,
अब
मैं शायरी नहीं करता .
जुनूं
की हद थी जब
नंगे पावं
दौड़ा
तेरे पीछे
पानी
झील का सा हो
गया मैं ,
अब
नहीं बहता
मान
लिया गोया हमीं हैं
इश्क़
में मुज़रिम
हर
सूरत में सजा मेरी है
बस
मैं उफ़ नहीं करता
वो
दौर गज़ब था ,
लड़ा
हर ग़लत पे मैं
हर
ठौर ग़लत अब ,
पर
मैं नहीं लड़ता .
चुप्पियां
ओढ़ ली हैं मैंने
,
मैं
अब कुछ नहीं कहता