बेवजह तुमने भी कुछ गुत्थियाँ बुन लीं,
बियावन है मेरी राह,
गुजरती जंगलों के
बीच,
पराये सच और अपने झूठ की
क्यों गाँठ बुन लीं,
बेवजह तुमने भी कुछ गुथियाँ बुन लीं!
थोथी बातें, नकली गीत
कैसे दिल बहलाओगे,
हम तो सच के सांप से
खेलें ,
तुम कैसे रह पाओगे,
आज तुमने फिर गलत एक राह चुन ली,
बेवजह तुमने भी कुछ गुत्थियाँ बुन लीं!
बे- शिकन चेहरे से मेरे
मत भरम खाओ,
बड़े मासूम हो तुम
घर अपना कैसे जलाओगे,
हमने कहा था कुछ और
बात तुमने कुछ और सुन ली,
बेवजह तुमने भी कुछ गुत्थियाँ बुन लीं!
चाहिए कुछ और ज़िन्दगी से
माँगते कुछ और हो,
सच की खूंटियों पे
टांगते कुछ और हो,
कैसे काटोगे सफ़र
ग़र ज़िन्दगी ने दुआ सुन ली
बेवजह तुमने भी कुछ गुत्थियाँ बुन लीं
kya vakai bevajah
ReplyDeletekishore ji prashn tomeri samajha nahi aaya parntu mera aashay bewajah nahi :-)
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