बहुत दिन मैं तुम्हारे दर्द को सीने पे लेकर
जीभ कटवाता रहा हूँ ,
शहर दर शहर घूमता जा रहा हूँ
कई साल कटे हैं जाग कर ही
तुम्हारा दर्द दाखिल हो चूका नज़्म में
अब सो रहा है
पुराने सांप को आखिर अंधरे बिल में जा कर नींद आई है
जीभ कटवाता रहा हूँ ,
शहर दर शहर घूमता जा रहा हूँ
कई साल कटे हैं जाग कर ही
तुम्हारा दर्द दाखिल हो चूका नज़्म में
अब सो रहा है
पुराने सांप को आखिर अंधरे बिल में जा कर नींद आई है
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