Sunday, April 25, 2010

मैं ज़िन्दगी हूँ , मुस्कराना जानती हूँ

सतरंगी धूप की बेरंग तपिश सी
मैं फरेबी सब्जबाग नहीं जो मिराज़ बन जाऊं
मैं ज़िन्दगी हूँ खुद को आज़माना जानती हूँ
बेलौस बेधड़क छौंक सी हंसती हूँ
बासी खुशियों का मरहम
ताज़े ज़ख्मो पे रखती हूँ
 मैं ज़िन्दगी हूँ , मुस्कराना जानती हूँ
नाचती हूँ बंजारों सी बेफिक्र
मुझे घर नहीं आसमान चाहिए
मैं ज़िन्दगी हूँ ख्वाब सजाना जानती हूँ
इश्क फरेबी यार अजनबी
रिश्ते नाते हुए मतलबी
मैं चीखती नहीं
मैं ज़िन्दगी हूँ , दर्द गुनगुनाना जानती हूँ
मेरी आँखों के आलो में रोशन दीये
हर मात पे शय के सौ रास्ते
मैं डूबती नहीं
मैं ज़िन्दगी हूँ , पार जाना जानती हूँ