Monday, December 8, 2014

हर दौर मुहब्बत थी जिद्दी

गुथ्थम  गुथ्थी ख़्वाबों से कर ,  हांफ  रहा  दिल  बंजारा 
दिल बच्चा है , दिल जीतेगा,  टूक  ताक  रहा  मैं आवारा
क्यूँ देखू कोई ख़्वाब नया,  ज़िद दिल की  मेरे  क्यूँ  तोडू
ग़र दिल बच्चा, मैं भी बच्चा .क्यूँ मानू मैं, क्यूँ मुँह मोडू
मर मजनूँ और रांझा जीते  ,  मर के जीता महिवाल मेरा    
हर दौर मुहब्बत थी जिद्दी , फिर क्यूँ मैं अपनी जिद छोड़ू  

Friday, October 31, 2014

मेरे खुद में , कम रह गया हूँ मैं खुद ही

मेरे खुद में , कम रह गया हूँ मैं खुद ही
साल दर साल तू बढ़ गया मुझमे ,
खामोश रहता हूँ , खूब हँसता हूँ
हँसते हँसते आँखे छलक पड़ती हैं कभी
पर गिरने नहीं देता उन्हें बाहर ,
एक दो बूँद ही सही
कही तू कम न हो जाये मुझमे
तेरी मासूमियत से भरी कोरी जिदें
और इलज़ाम भी ,
हमेशा रहे सर आँखों पर ,
अब तो यूँ भी कहूँ तो बज़ा न होगा
की उम्र भर हाँ जी उम्र भर  

तुम्हारा दर्द अब सो रहा है

बहुत दिन मैं तुम्हारे दर्द को सीने पे लेकर
जीभ कटवाता रहा हूँ ,
शहर दर शहर घूमता जा रहा हूँ
कई साल कटे हैं जाग कर ही
तुम्हारा दर्द दाखिल हो चूका नज़्म में
अब सो रहा है
पुराने सांप को आखिर अंधरे बिल में जा कर नींद आई है 

Sunday, August 24, 2014

क्यूँ घूरते हैं रात के पल

चुपचाप इस ख़ामोशी से
ये रात के पल क्यों देखते हैं मुझे ,
मैं अभी जग रहा हूँ
ये गुनाह है क्या ,
हैं तो बता दो सो जाऊंगा
पर घुरो मत मुझे ,
अकड़बाज़ रात के कारिंदे हो
तुम्हारी लाज रखने को डरना पड़ता है ,
फुसफुसा रहे हो , हवा को बुला रहे हो ? ,
अपने साथी से कहो
ये झींगुरों की आवाज न निकाले,
ये आवाज बचपन में करामाती थी
अब सिर्फ एक बासी धुन लगती हैं ,
कान के पास गुजरती हवा ने कहा
सो जा पगले फ़क़ीर ये तुझे क्या डराएंगे
तेरे सोते ही लिपट कर तुझसे ये भी सो जायेंगे,
ये मासूम तो इंतज़ार कर रहे हैं तेरे सोने का
तेरे लिए सुनहले ख्वाबो के हाट से
कुछ ख्वाब लाये हैं   .