Friday, October 8, 2010

काबिलेगौर ये है


मेरी मासूमियत को लकवा मार गया है
काबिलेगौर ये है
की मैं खुद से रूठ गया हूँ ,
गर्म कॉफी में तैरते बर्फ के टुकडे सा
जल रहा हूँ ग़ल रहा हूँ
घोलता हुआ फीकापन ,
पर अब तो संजीदा मसलो पर भी
बोल नहीं  फूटते ,
मेरी  ही मसलहत* की शिकार मेरी मासूमियत
टुकुर टुकुर ताकती है मुझे बेबस ,
मैं नज़रे फेर गुनगुनाने लगता हूँ
जैसे कुछ हुआ ही नहीं ,
पर काबिलेगौर ये है
की मैं खुद से रूठ गया हूँ
मेरी मासूमियत को लकवा मार गया है,

* मसलहत - Philosophy