Wednesday, May 18, 2016

चुप्पियां ओढ़ ली हैं मैंने

चुप्पियां ओढ़ ली हैं मैंने ,
मैं अब कुछ नहीं कहता  
मतलों  की शक्ल में क्यों
कसते हो फ़िकरे,
कई साल हुए ,
अब मैं शायरी नहीं करता .
जुनूं की हद थी जब नंगे पावं
दौड़ा तेरे पीछे
पानी झील का सा हो गया मैं ,
अब नहीं बहता
मान लिया गोया हमीं हैं
इश्क़ में मुज़रिम
हर सूरत में सजा मेरी है
बस मैं उफ़ नहीं करता
वो दौर गज़ब था ,
लड़ा हर ग़लत पे मैं
हर ठौर ग़लत अब ,
पर मैं नहीं लड़ता .
चुप्पियां ओढ़ ली हैं मैंने ,
मैं अब कुछ नहीं कहता