Sunday, August 24, 2014

क्यूँ घूरते हैं रात के पल

चुपचाप इस ख़ामोशी से
ये रात के पल क्यों देखते हैं मुझे ,
मैं अभी जग रहा हूँ
ये गुनाह है क्या ,
हैं तो बता दो सो जाऊंगा
पर घुरो मत मुझे ,
अकड़बाज़ रात के कारिंदे हो
तुम्हारी लाज रखने को डरना पड़ता है ,
फुसफुसा रहे हो , हवा को बुला रहे हो ? ,
अपने साथी से कहो
ये झींगुरों की आवाज न निकाले,
ये आवाज बचपन में करामाती थी
अब सिर्फ एक बासी धुन लगती हैं ,
कान के पास गुजरती हवा ने कहा
सो जा पगले फ़क़ीर ये तुझे क्या डराएंगे
तेरे सोते ही लिपट कर तुझसे ये भी सो जायेंगे,
ये मासूम तो इंतज़ार कर रहे हैं तेरे सोने का
तेरे लिए सुनहले ख्वाबो के हाट से
कुछ ख्वाब लाये हैं   .