Saturday, March 13, 2010

कुछ पल को अभी चुप रहने दो

दर्द उकता गयें हैं
रिस रिस के,
कुछ दिन को अभी
तमाशा ये बंद है,
कुछ पल को अभी चुप रहने दो
मायूस ना हो
मैं  तड़पुंगा           
मजलिसे फिर सजेंगी
दर्द की मेरे
कुछ पल अभी चुप रहने दो 
तुम्हारी सोंधी हंसी के बिना
भला जी सकूँगा मैं ,
बड़े बेसब्रे हो
ख्वाबों में चले आते हो,
सोती आँखों से
भला रो सकूँगा मैं ,
कुरेदूंगा ज़ख्म अपना
तुम्हारे लिए
बिलबिला उठूँगा
नए अंदाज़ से
तब हंस लेना
कुछ पल को अभी चुप रहने दो!

Thursday, March 11, 2010

बस ख्वाब ही तो हैं

पतले गुलाबी नर्म से
तेरे ये होंठ,
इश्क़ की एक प्यारी सी
नज़्म ही तो हैं,
धर लूं अपने होंठो पे
चुपके से गुनगुना लूं,
खतावार ना कह
बस ये ख्यालात ही तो हैं ,
कभी तेरा जी नहीं करता
सर रख के मेरा गोद में
लोरी सुनाये मुझको
लम्हात ठहर जाएँ
सदियाँ गुज़र जाएँ
गुनहगार ना कह मुझको
ख्यालात हैं ये मेरे
मीठे से मेरे ख्वाब
बस ख्वाब ही तो हैं

Wednesday, March 10, 2010

बेवजह तुमने भी कुछ गुत्थियाँ बुन लीं

बेवजह तुमने भी कुछ गुत्थियाँ बुन लीं,
बियावन  है मेरी राह,
गुजरती जंगलों के
बीच,
पराये सच और अपने झूठ की
क्यों गाँठ बुन लीं,
बेवजह तुमने भी कुछ गुथियाँ बुन लीं!
थोथी बातें, नकली गीत
कैसे दिल बहलाओगे,
हम तो सच के सांप से
खेलें ,
तुम कैसे रह पाओगे,
आज तुमने फिर गलत एक राह चुन ली,
बेवजह तुमने भी कुछ गुत्थियाँ बुन लीं!
बे- शिकन चेहरे से मेरे
 मत भरम खाओ,
बड़े मासूम हो तुम
घर अपना कैसे जलाओगे,
हमने कहा था कुछ और
बात तुमने कुछ और सुन ली,
बेवजह  तुमने भी कुछ गुत्थियाँ बुन लीं!
चाहिए कुछ और ज़िन्दगी से
माँगते कुछ और हो,
सच की खूंटियों पे
टांगते कुछ और हो,
कैसे काटोगे सफ़र
ग़र ज़िन्दगी ने दुआ सुन ली
बेवजह तुमने भी कुछ गुत्थियाँ बुन लीं