Tuesday, January 13, 2015

मुझे भुलाने का हुनर नहीं आता

एक रिश्ता रोज उगता है हथेली पर मेरे ,
रात टपकाती है जब यादों की ओस बूंद भर .
मुझे भुलाने का हुनर नहीं आता ,
न आता है कोई सकूनदार 
उठाने यादों की डस्टबिन मेरे घर , 
मेरे कमरे की दिवार में 
फ्यूचर की एक खिड़की हैं. 
इसी खिड़की पर मेरे यादों की डस्टबिन 
सजा रखा है मैंने गमले की तरह.
रात उगे इस रिश्ते को रोज सुबह बो देता हूँ
यादों की डस्टबिन में .
एक रिश्ता रोज उगता है हथेली पर मेरे ,
रात टपकाती है जब यादों की ओस बूंद भर .

    

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