Saturday, March 13, 2010

कुछ पल को अभी चुप रहने दो

दर्द उकता गयें हैं
रिस रिस के,
कुछ दिन को अभी
तमाशा ये बंद है,
कुछ पल को अभी चुप रहने दो
मायूस ना हो
मैं  तड़पुंगा           
मजलिसे फिर सजेंगी
दर्द की मेरे
कुछ पल अभी चुप रहने दो 
तुम्हारी सोंधी हंसी के बिना
भला जी सकूँगा मैं ,
बड़े बेसब्रे हो
ख्वाबों में चले आते हो,
सोती आँखों से
भला रो सकूँगा मैं ,
कुरेदूंगा ज़ख्म अपना
तुम्हारे लिए
बिलबिला उठूँगा
नए अंदाज़ से
तब हंस लेना
कुछ पल को अभी चुप रहने दो!

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