Thursday, March 11, 2010

बस ख्वाब ही तो हैं

पतले गुलाबी नर्म से
तेरे ये होंठ,
इश्क़ की एक प्यारी सी
नज़्म ही तो हैं,
धर लूं अपने होंठो पे
चुपके से गुनगुना लूं,
खतावार ना कह
बस ये ख्यालात ही तो हैं ,
कभी तेरा जी नहीं करता
सर रख के मेरा गोद में
लोरी सुनाये मुझको
लम्हात ठहर जाएँ
सदियाँ गुज़र जाएँ
गुनहगार ना कह मुझको
ख्यालात हैं ये मेरे
मीठे से मेरे ख्वाब
बस ख्वाब ही तो हैं

2 comments:

  1. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .

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