Sunday, February 8, 2015

किस्मत हुई कुम्हार.

गढ़ गढ़ गुल्लक मेरी खातिर ,
किस्मत हुई कुम्हार.
मैं मन का चाकर भला ,
क्या जोड़ू दो चार.
चंद ख्वाब खन खन करते ,
पल कुछ पुराने मुड़े तुड़े ,
माँ की कुछ तस्वीरें ,
बाबू जी का एक खत ,
जिसमे माँ ने लिखा था
"मेरे सोना मेरे प्रियतम "
और हाँ एक हँसी भी
सजों रखी है मैंने  ,
खिलखिलाती इन्द्रधनुष सी.
बाकी सब ख़र्च कर देता हूँ
मैं मन का चाकर भला
क्या जोड़ू दो चार ,
गढ़ गढ़ गुल्लक मेरी खातिर
किस्मत हुई कुम्हार  

No comments:

Post a Comment